इंटर पास प्रत्याशी लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए खतरा
anurag
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पिछले दिनों देश ने गणतंत्र की स्थापना का ६३वी सालगिरह मनाई और व्यस्क होते लोकतंत्र पर हम सब ने गर्व महसूस किया. किन्तु जिस तरह दिनों दिन हमारा लोकतंत्र वयस्क होता जा रहा है वैसे ही दिनों दिन इस लोकतंत्र के अस्तित्व पर खतरा भी बढ़ता जा रहा है और खतरा भी कोई विदेशी मुल्क से नहीं बल्कि अपने ही देश में बनाये कुछ नियमो के कारण है. इस समय उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव चल रहे है. हर पार्टी अपनी चुनावी घोषण पात्र में एक नए उत्तर प्रदेश की तस्वीर पेश कर रही है. कोई कह रहा है की वो २०२० तक उत्तर प्रदेश को विकसित प्रदेश बना देगा तो कोई कह रहा है की अगर वो सत्ता में आये तो प्रदेश आर्थिक प्रगति को प्राप्त करेगा और एक भ्रष्टाचार मुक्त सुशासन की सरकार प्रदेश में स्थापित होगी. किन्तु मेरा प्रश्न है कैसे? अगर हम अगले दस दिनों में होने वाले प्रथम चरण के चुनावो की ही चर्चा करे तो प्रथम चरण में कुल ११६ प्रत्याशी ऐसे है जिनका शैक्षिक स्तर इंटर या उसे भी कम है. एक निजी संस्था उत्तर प्रदेश इलेक्शन वाच के सर्वे के आधार पर निकले आकड़ो पर गौर किया जाये तो पहले चरण के चुनाव में 11 प्रत्याशी ऐसे हैं जो पढ़ लिख तो लेते हैं लेकिन वह कभी स्कूल नहीं गये.चुनाव में चार प्रत्याशी पांचवी पास और 17 प्रत्याशी आठवीं पास हैं जबकि दसवीं पास प्रत्याशियों की संख्या 22 और बारहवीं पास प्रत्याशियों की संख्या ६२ है इसी तरह स्नातक प्रत्यशियो की संख्या ५७ है. और ये सभी प्रत्याशी भी किसी ऐरी गैरी पार्टियों के नहीं है अपितु ये देश और प्रदेश में स्थापित सपा, भाजपा, बसपा और कांग्रेस जैसी पार्टियों के प्रत्याशी है. उत्तर प्रदेश इलेक्शन वाच संस्था के मुताबिक बसपा के पन्द्रह प्रत्याशी बारहवीं पास हैं जबकि भाजपा के बारह और सपा के तेरह उम्मीदवारों ने बारहवी की परीक्षा पास की है. कांग्रेस ने भी भाजपा की तरह बारह, बारहवीं पास प्रत्याशियों को टिकट दिया है। पीस पार्टी के आठ और जनतादल यू के बारहवीं पास दो प्रत्याशी हैं. सपा और कांग्रेस ने एक-एक पांचवी पास प्रत्याशी मैदान में उतारा है.विदित हो की अपने चुनावी घोषणा पत्र में सभी रजनैतिक दलों ने प्रदेश के युवाओ को लैपटाप और आकाश कैप्सूल जैसी अत्य्धुनिक चीजों से लैस करने के साथ ही प्रदेश में बेहतर शिक्षा व्यवस्था लागू करने की बात कही है. किन्तु यहाँ प्रश्न यह की जब इन पार्टियों के जीते हुए प्रत्याशी अंगूठा छाप होंगे तो ये पार्टिया किस तरह प्रदेश के शैक्षिक स्तर को सुधारेंगी क्योकि कल इन्ही अंगूठाछापो में से कोई शिक्षा मंत्री बनेगा तो कोई स्वास्थ मंत्री बनेगा.जब जनप्रतिनिधि ही हाई स्कूल और इंटर पास होंगे तो फिर तेज़ी से ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट हो रहे प्रदेश के युवाओ की समस्याओ का निपटारा वो कैसे करेंगे इसके अलावा यदि वो प्रदेश की सता पर आसीन होते है तो वो किस तरह प्रदेश के विकास के लिए नीतियों का निर्धारण करेंगे जबकि वो खुद ही हाई स्कूल और इंटर पास है. ऐसे प्रतिनिधि आने वाले समय में लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए सबसे बड़ा खतरा होंगे.
वास्तव में देखा जाये तो पिछले कुछ सालो से जो राजनीत के स्तर में जो गिरावट आई है उसका बहुत कुछ कारण हमारे जनप्रतिनिधियों का पढ़ा लिखा न होना भी है. ये जनप्रतिनिधि जब प्रदेश की सत्ता में पहुचते है तो वो खुद तो कुछ जान नहीं पाते और अपने सभी दायित्व अपने सचिवो को दे देते है और सचिव भी अपने मनमाफिक काम करते रहते है. जनप्रतिनिधि इस बात से खुश रहता है की बिना पढ़े लिखे भी सत्ता में उसकी कुर्सी बरकरार है और सचिव इस बात से खुश रहता है की चलो कोई तो अंगूठा छाप मिला है जिसको जैसा चाहेंगे वैसा पढ़ा देंगे. पिछले कुछ वर्षो का प्रदेश का राजनितिक इतिहास टटोला जाये तो यह बात स्पष्ट हो जाती है विगत कुछ वर्षो में ऐसे कुछ जनप्रतिनिधि मंत्री की हैसियत से प्रदेश की सत्ता में आये जो कुछ भी नहीं जानते थे और उनका पूरा काम उनके सचिवो द्वरा निपटाया जाता था. जिसका नतीजा ये निकला की प्रदेश विकास के पथ पर तो अग्रसर नहीं हुआ लेकिन भ्रष्टाचार के पथ पर जरुर अग्रसर हो गया है. मै ये कतई नहीं कह रहा हूँ की प्रदेश में बढ़ रहे भ्रष्टाचार के लिए ये अनपढ़ जनप्रतिनिधि ही पूर्ण रूप से जिम्मेदार है किन्तु हाँ आंशिक रूप से जरुँर इस बढ़ते भ्रष्टाचार के लिए ये जिम्मेदार है.
यहाँ गौर करने की बात यह है की अगर आज अनपढ़ व्यक्ति भी इस देश का राजनेता बन सकता है उसका कारण है चुनाव लड़ने से सम्बंधित नियमो में इस बात का उल्लेख न होना की चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति की शैक्षिक योगता क्या होगी ? चुनाव लड़ने के लिए दी गयी शर्तो में कही भी इस बात का उल्लेख नहीं है की चुनाव लड़ने वाले का शैक्षिक स्तर कितना हो अर्थात चुनाव लड़ने के लिए कितनी पढाई की आवश्यकता हो. आज प्रदेश से लेकर देश तक में निकलने वाली हर नौकरी के लिए शैक्षिक सत्र निर्धारित होता है जैसे इंजीनियर बनने के लिए बी-टेक या एम टेक का होना जरुरी है वकील बनने के लिए एल.एल.बी होना जरुरी है लेकिन नेता बनने के लिए किसी भी डिग्री की आवश्यकता नहीं है. जबकि नेताओ का शैक्षिक स्तर सबसे पहले निर्धारित होना चाहिए था क्योकि ये नेता ही देश और प्रदेश की नीति निर्धारक होते है किन्तु हाय रे दुर्भाग्य की जिन नेताओ के हाथो से इस देश और प्रदेश की किस्मत का निर्धारण होना है वो आज अपनी किस्मत का भी निर्धारण बिना सचिवो की मदद के नहीं कर सकते. इसलिए राजनीत में अपराधीकरण से लेकर भ्रष्टाचार तक की समस्या बढ रही है. अभी वक़्त है चुनाव आयोग जिस तरह चुनावों में मतदान के लिए लोगो को अभिप्रेरित कर रहा है उसी तरह वो चुनाव लड़ने के लिए शैक्षिक स्तर को भी निर्धारित करने के विषय में गंभीरता से सोचे अन्यथा वह दिन दूर न होगा जब देश और प्रदेश की सत्ता में बैठें तो हमारे निर्वाचित जनप्रतिनिधि होंगे लेकिन उनको नियंत्रित करेगा कोई दूसरा ही तबका.
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