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फेसबुक अभिवयक्ति को व्यक्त करने का माध्यम या मनोरंजन का साधन

anurag
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पिछले दिनों एक बात निकल कर लगातार आ रही थी की केंद्र सरकार फेसबुक और गूगल  सहित देश में चल रही सभी सोसल नेटवर्किंग साईंटो पर रोक लगाने का विचार कर रही है और इस सन्दर्भ में पिछले दिनों दिल्ली हाई कोर्ट ने भी अपने आदेश में कहा की गूगल  और फेसबुक सहित सभी सोसल नेटवर्किंग साइटे अपने कंटेंट्स पर धयान  दे अन्यथा भारत में उनके उपयोग पर प्रतिबन्ध लग सकता है. सरकार की मंशा और उच्च न्यायालय के इस आदेश के खिलाफ देश भर में तीखी प्रतिक्रिया हुई और लोग कहने लगे की सरकार अभिवयक्ति की आज़ादी के माध्यम फेसबुक और गूगल पर रोक लगाकर भारतीये संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार का गला घोट रही है. अब प्रश्न यह है की सविधान द्वारा प्रदत्त  अभिवयक्ति की आज़ादी का मतलब क्या है? और वर्तमान दौर में इन साइटों के माध्यम से जो अभिवयक्ति व्यक्त की जा रही है उसका अर्थ क्या है और वो किन रूपों में व्यक्त हो रही है? और क्या आज  के दौर में जनता वास्तव में फेसबुक और गूगल के माध्यम से अभिवयक्ति को व्यक्त कर रही है?

अगर हम बात सिर्फ फेसबुक की करे तों प्रायः फेसबुक पर होने वाली गतविधि गंभीर राजनैतिक या सामाजिक विषयों से हटकर मात्र मनोरंजन के साधन पर आकर टिकी हुई है. आज अगर आप और हम किसी भी गंभीर विषय  पर कोई लेख लिखते है या मौजूदा राजनैतिक और सामाजिक विषयों पर चर्चा करते है तों उसको पसंद करने वालो या उस पर टिप्पड़ी करने वालो की संख्या १०० में कही दस होती है लेकिन यदि हम किसी तरह की मनोरंजत्मक तस्वीर डालते है तों उसको पसंद करने वालो और उस पर टिप्पड़ी करने वालो की संख्या १०० में १०० होती है.  ऐसे में प्रश्न यह खड़ा हो जाता है की इस देश में फेसबुक क्या है अभिवयक्ति को व्यक्त करने  का माध्यम या मात्र मनोरंजन का साधन ? वास्तव में अगर देख जाये तो आज के दौर में फेसबुक अभिवयक्ति को व्यक्त करने का माध्यम कम है और मनोरंजन का साधन ज्यादा.  आज युवा गंभीर राजनैतिक और सामजिक विषयों पर चिंतन करने से ज्यादा मौजमस्ती के जीवन को जीने में ज्यादा विश्वाश करता है वो  खाओ, पियो और मौज उडाओ के सिद्धांतो पर चल रहा है उसे गंभीर सामजिक राजनैतिक विषयों पर विचार करने से ज्यादा मनोरंजतामक चीजों पर ध्यान देना और उन पर विचार करना ज्यादा अच्छा लगता है.

पिछले दिनों फेसबुक पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से लेकर सोनिया गाँधी और दिग्विजय सिंह के कई आपत्तिजनक और मनोरंजन करती तस्वीरे चली और युवाओ ने उसे हाथो हाथ लिया . १०० में से लगभग हर तीसरे फेसबुक के उपयोगकर्ता ने इन तस्वीरो का इस्तेमाल किया. जिसको हम सभी ने देश की कांग्रेस सरकार के प्रति जनता की नाराजगी समझा किन्तु ये नाराजगी सम्पूर्ण जनता की नहीं अपितु उन लोगो की थी जो कांग्रेस सरकार के खिलाफ है.उनमे से किसी एक ने ऐसी मनोरंजतामक तस्वीर बनायीं और इस देश के करोडो फेसबुक यूजरो विशेषकर युवाओ ने उसे हाथो हाथ लिया क्योकि उन तस्वीरों से उन्हें मनोरंजन होता दिखता था. उन्हें  लगता है की अगर इस फोटो को डाला जायेगा तो लोग ज्यादा पसंद करेंगे और टिप्पड़ी करेंगे. ध्यान रहे ऐसे उपयोगकर्ताओ का उद्देश्य किसी भी गंभीर राजनैतिक या सामाजिक विषय  को जनता के बीच लाना नहीं होता अपितु  उनका उद्देश्य मात्र ऐसी तस्वीरो से मनोरंजन  करना होता है क्योकि अगर इनका उदेश्य किसी राजनैतिक या सामाजिक विषय पर चिंतन करना होता तों वो उस विषय पर या उस विषय  से सम्बंधित तस्वीर पर कोई विचार रखते, कोई विकल्प देते ना की सिर्फ उसकी बुराइया ही लिखते. इसके अतरिक्त तब इन युवा यूजरो के निशाने  सिर्फ कांग्रेस और उसकी सरकार ही न होती अपितु हर राजनैतिक दल होता क्योकि आज जो भी राजनैतिक और सामाजिक स्थिति इस देश में है  उसके लिए सिर्फ कांग्रेस ही दोषी नहीं है बल्कि सभी राजनैतिक पार्टिया और उनकी सरकारे जिम्मेदार है  . आज देश में करोडो लोग फेसबुक और गूगल का इस्तेमाल करते है लेकिन उनमे से शायद तीस फीसदी ही ऐसे होंगे जो इसका उपयोग वास्तव में राजनैतिक और सामाजिक विषयों पर अपनी राय देने के लिए करते होंगे और इन तीस फीसदी  में भी १० फीसदी है ऐसे जो इसका उपयोग धार्मिक उन्माद को बढ़ाने, व्यक्ति की निजता का हनन करने तथा गंभीर सामाजिक राजनैतिक आस्थिरता को पैदा करने के लिए करते है और वो इसे अभिवयक्ति की आजादी  का नाम देते है.

ध्यान  रहे की भारतीय लोकतंत्र  द्वारा प्रदत्त इस अधिकार का मतलब यह बिल्कुल नहीं है की हम किसी धर्म के खिलाफ, किसी व्यक्ति के खिलाफ ऐसी टिप्पड़िया  करे जो राष्ट्रीय एकता को खंडित करे. सविधान के अनुच्छेद १९ में इस बात का स्पष्ट  उल्लेख है की हमारा ये अधिकार उन जगहों पर प्रतिबंधित हो जायेगा जहा पर धार्मिक उन्माद, व्यक्ति की निजता, या राष्ट्रीय अखंडता पर कोई खतरा हो. इसलिए सरकार द्वारा फेसबुक के सन्दर्भ किया जाने वाला विचार पूर्ण रूप से गलत नहीं है क्योकि अभी भारत में फेसबुक आभिवय्क्ति को व्यक्त करने का सही माध्यम नहीं बन पाया है. ये अभिवयक्ति को व्यक्त करने का सही माध्यम तब बन पायेगा जब करोडो की जनता यानि फेसबुक के उपयोगकर्ता विशेषकर युवा वास्तव में फेसबुक का उपयोग सामजिक और राजनैतिक सरोकारों की लिए करे न की मनोरंजन के लिए. और जब तक ऐसा नहीं होता सरकार द्वारा किया जाने वाला विचार या दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय गलत नहीं होगा क्योकि अभिवयक्ति के तौर जितना भी इस्तेमाल फेसबुक पर आज के दौर में  हो रहा है वो मात्र व्यक्तिगत स्वार्थो की पूर्ति के लिए है न की राजनैतिक और सामाजिक सरोकारों के लिए.

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