अभिव्यक्ति की आजादी : मतलब क्या लोकतान्त्रिक चिन्हों का उपहास ?
पिछले तीन चार दिनों से कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी की गिरफ़्तारी देश में चर्चा का केंद बिंदु बनी हुई है और आज तमाम राजनैतिक उठा पठक के बाद कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी को रिहा कर दिया गया और कुछ का अन्तः निहित स्वार्थो की पूर्ति का। इसलिए संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की आजादी को समझना अब आवश्यक है?
इस संदर्भ में सबसे सही स्पष्टीकरण हमें वही से मिल सकता है जहाँ से हमें अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार मिला है यानि हमारा संविधानजहाँ पर धार्मिक उन्माद, व्यक्ति की निजता, या राष्ट्रीय अखंडता पर कोई खतरा हो अर्थात ऐसा कोई भी विचार जो राष्ट्र के हितो का उल्लंघन करता हो अभिवयक्ति की आजादी में शामिल नहीं होगा. अब ऐसी परिस्थति में ये कैसे कहा जा सकता है कि कार्टूनिस्ट असीम ने जो किया वो सही है जबकि उन्होंने हमारे राष्ट्रीय अखंडता के प्रतीक सत्यमेव जयते को ही मजाक का पात्र बना डालाकेंद्र की कांग्रेस सरकार और संसद में बैठे सभी राजनैतिक दल भ्रष्टाचार और उससे सम्बंधित कानून लोकपाल पर राजनीत खेल रहे हैपर यहाँ जो बात समझ से परे है वो यह है कि देश में जो मौजूदा राजनीत चल रही है उसके लिए हमारे लोकतंत्र के प्रतीक चिन्ह कैसे जिम्मेदार हो सकते है जबकि सभी प्रतीक चिन्ह किसी भी सरकार और राजनैतिक दल से ऊपर है और इस देश में लागू लोकतान्त्रिक व्यवस्था के प्रतीक हैचिन्ह को मौजूदा भ्रष्ट व्यवस्था से जोड़कर असीम क्या साबित करना चाहते है कि मौजूदा भ्रष्ट व्यवस्था के लिए हमारा लोकतंत्र ही जिम्मेदार है और हमारे लोकतंत्र में ही इतनी ताक़त नहीं है की वो देश में फैले भ्रष्टाचार को रोक सके अखंडता पर एक हमला ही माना जायेगा इसलिए असीम त्रिवेदी का कृत्य किसी भी रूप में अभिव्यक्ति की आजादी के अधीन नहीं आता हमारा निशाना राजनैतिक दल होने चाहिए न की संसदिय प्रतीक चिन्ह।
Read Comments