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सीमाओ से अधिक मुलायम का हस्तक्षेप अखिलेश की कार्यकुशलता पर एक प्रश्नचिन्ह?

anurag
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१५  मार्च २०१२ को जब सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने अपने पुत्र अखिलेश यादव को प्रदेश की बागडोर दी थी तो कहा था कि अखिलेश को अपनी कार्यकुशलता सिद्ध करने के लिए कम से कम ६ महीने का समय तो दिया ही जाना चहिये। अब जबकि अखिलेश सरकार  ने ६ महीनो का कार्यकाल पूरा कर लिया है तो यह देखना आवश्यक है कि इन छ : महीनो के कार्यकाल में मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश ने अपने आप को कितना सिद्ध किया। अखिलेश सरकार के छ : महीने  के कार्यकाल में 8 जगहों पर सांप्रदायिक दंगे हो चुके हैं, इसके अतिरिक्त हर दिन कही न कहीं हत्या लूट और बलात्कार की खबरे मीडिया की सुखियो में बनी रहती है। लगातार हत्या, लूट और बलात्कार की बढती वारदातों को देखकर लगता है कि अब प्रदेश में कानून का राज नहीं रह गया और पूरी कानून व्यवस्था ने ही अपराधियों के आगे घुटने टेक दिए हैं। स्वयं अखिलेश ने भी कानून व्यवस्था के मुद्दे पर अपनी सरकार की कमजोरियों को माना। ऐसे में अब प्रश्न यह उठता है कि वो कौन से कारण है जिसके चलते राज्य की कानून व्यवस्था लगातार बिगडती जा रही है और मुख्यमंत्री द्वारा दिए जा रहे निर्देशों के बाद भी प्रशासनिक अधिकारियो पर उनके निर्देशों का कोई फर्क नहीं पड़ रहा?
वास्तव में देखा जाये तो इसके पीछे एक राजनैतिक परिक्वता की कमी स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है। अखिलेश युवा है किन्तु राजनैतिक रूप से पूरी तरह से परिपक्व नहीं है जिसके चलते  प्रशासनिक अधिकारियो में एक मुख्यमंत्री का जो रुतबा होता है वो अखिलेश के प्रति नहीं है। इसके अतिरिक्त एक बात और है वो यह कि वरिष्ठ अधिकारियो के जेहन में एक बात बैठी हुई है कि अखिलेश तो मात्र कहने के लिए मुख्यमंत्री है सारा काम तो सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के ही निर्देशों पर होगा जिसके चलते अधिकारी अखिलेश के निर्देशों से ज्यादा मुलायम सिंह के बयानों और उनके निर्देशों पर नजर रखते है और उसी के अनुरूप अपना कार्य करते है। जिसकी एक बानगी अभी पिछले दिनों ही देखने को मिली जब मुख्यमंत्री अखिलेश की समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री के मौजूद होने बाद भी अधिकारियो में समीक्षा बैठक का कोई खास डर नहीं दिखा और बे-तकल्लुफ होकर चलती समीक्षा बैठक में मोबाईल से बाते करते रहे।C.M Samiksha Baithak
यहाँ पर पूर्वर्ती माया सरकार कि कार्यशैली पर थोड़ी नजर डालना आवश्यक है। पूर्वर्ती माया सरकार के शासनकाल में जब भी पूर्व मुख्यमंत्री मायावती समीक्षा बैठक करती थी तो समीक्षा बैठक में आने वाले अधिकारियो के पसीने छुटा करते थे। अधिकारी बात करना तो दूर पानी पीने की भी हिम्मत नहीं कर पाते थे क्योकि मायावती का अधिकारियो के बीच में एक मुख्यमंत्री वाला रुतबा था और अधिकारी ये अच्छी तरह से जानते थे कि मैडम की नजर अगर जरा सी भी टेढ़ी हुई तो कुर्सी गयी। मुख्यमंत्री का यही रुतबा अखिलेश के प्रति अधिकारियो में नहीं दीखता। वो इस बात को अच्छी  तरह से समझते है कि यदि मुख्यमंत्री नाराज भी हो जाये तो सपा प्रमुख मुलायम सिंह को मना कर अपनी कुर्सी बचायी जा सकती है। इसीलिए सभी वरिष्ठ अधिकारी मुख्यमंत्री अखिलेश के निर्देशों  से ज्यादा मुलायम सिंह यादव के निर्देशों को नजर में रखते हैं।
यहाँ पर यह बात भी गौर करने योग्य है कि ये मानसिकता सिर्फ राज्य के प्रशासनिक अधिकारियो में ही नहीं है बल्कि अखिलेश सरकार में शामिल ज्यादातर कैबिनेट मंत्रियो की भी हैं।  इसलिए अफसरों और मंत्रियो में ये आम धारणा बन गयी है कि सरकार से जुड़े अहम फैसले उनके पिता मुलायम सिंह यादव ही लेते हैं। मंत्रिमंडल के ज्यादातर सदस्य मुलायम सिंह यादव के पुराने साथी हैं। वे अखिलेश के बजाए मुलायम को ही अपना नेता मानते हैं। इनमें सबसे पहला नाम आजम खां का है। आजम खां के कारण अखिलेश को कई बार नीचा देखना पड़ा है।
ऐसे में अब यहाँ यह आवश्यक हो गया है कि अखिलेश मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी और उसकी हनक को समझे और उसी के अनुरूप दिखाई दे, जिस तरह उन्होंने विधानसभा चुनाव के दौरान आजम खान और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओ की सहमती के बाद भी बाहुबली डीपी यादव और बीएसपी के कद्दावर नेता नसीमुद्दीन सिद्दकी के भाई हसीमुद्दीन सिद्दीकी के सपा में आने रोका था उसी तरह कानून व्यवस्था को मजबूत न करने वाले अधिकारियो से भी सख्ती से निपटे और एक सख्त मुख्यमंत्री की छवि अधिकारियो के बीच रखें। उन्हें अधिकारीयों को स्पष्ट सन्देश देना चहिये कि कानून व्यवस्था का केंद्र बिंदु मात्र मुख्यमंत्री है न कि पार्टी का कोई अन्य व्यक्ति।
हलाकि जैसा मैंने उप्पर लिखा है कि राजनैतिक परिपक्वता की कमी अखिलेश यादव में है,  इसलिए अखिलेश मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी को अभी ठीक तरह से निर्वाहित नहीं कर पा रहे है ऐसे में पिता मुलायम सिंह यादव का हस्तक्षेप भी जायज है, पर मुलायम का हस्तक्षेप अपने पुत्र के लिए होना चहिये न की राज्य के मुख्यमंत्री के लिए। एक मुख्यमंत्री के रूप अखिलेश के लिए फैसलों में, हो सकता हो कुछ फैसले गलत हो तो उस पर एक पिता के रूप में वे उनको समझाए न की सत्ताधारी पार्टी के प्रमुख की हैसियत से अपने निर्णयों को राज्य सरकार पर थोपे। मुलायम को यह समझना चहिये कि सीमाओं से अधिक हस्तक्षेप भी उनके बेटे के राजनैतिक भविष्य के लिए ठीक नहीं होगा, राज्य की कानून व्यवस्था और नीतियों के निर्धारण में उनका सीधा हस्तक्षेप भविष्य में अखिलेश की राजनैतिक कुशलता पर एक प्रश्न चिन्ह लगायेगा और अखिलेश कठपुतली मुख्यमंत्री के रूप में ही जाने जायेंगे।

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