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भैय्या दूज के अवसर पर अखिलेश सरकार द्वारा शुरू की गयी की महत्वाकांक्षी योजना महिला हेल्पलाइन योजना को महिलाओ का खासा समर्थन मिला। पहले ही दिन 792 लड़कियों ने काल करके अपनी समस्याए दर्ज करायीं। ज्यदातर समस्याएँ छेड़खानी और फेक कॉल्स की थीं। सभी समस्याओं को महिला कांस्टेबिलो ने गंभीरता से सुना और उनका उचित निवारण भी किया जो की काबिले तारीफ है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा शुरू की गयी यह योजना प्रशंसा की पात्र है, खासकर इस योजना में पकड़े गए अपराधियों पर की जाने वाली दंडात्मक कार्यवाही के प्राविधान। पर यहाँ एक प्रश्न यह भी खड़ा है कि उनका क्या होगा जिनके लिए कानून मात्र एक खिलौना है और जो रसूखदार खानदान के चिराग हैं। इसके अतिरिक्त एक प्रश्न यह भी उठता है कि छेड़खानी और फेक्स कॉल्स या फिर बलात्कार जैसे अपराध ज्यादातर कौन लोग करते है, वो जो आम आदमी के लड़के है या वो जो रसूखदार हैं। जब तक इस प्रश्नों का उत्तर न ढूंढ़ लिया जाये तब तक महिला हेल्पलाइन जैसी किसी भी योजना की सफलता संदेह के घेरे में रहेगी।
साधारण तौर पर देखें तो हम पाएंगे की इस तरह के मामलो में सभी तरह के युवक शामिल हैं वो चाहे आम आदमी के लड़के हों या फिर रसूखदार घर के चिराग। पर अगर थोड़ी सी भी गंभीरता से इस विषय में सोचा जाये तो हम पाते हैं कि इस तरह की समस्या में ज्यादातर वे लोग शामिल है जिनके पास पॉवर का रसूख है और जो सत्ता के नशे में डूबे हैं। ऐसे लोग छेड़खानी और फेक कॉल्स क्या, किसी भी युवती का बलात्कार कर देना भी अपना नैतिक हक़ समझते हैं क्योंकि उनको पता है कि अगर पीड़ित युवती पुलिस के पास जाएगी भी तो उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा, सत्ता के गलियारों में बैठे उनके तकाथित ठेकेदार उन्हें बचा लेंगे। अभी पिछले दिनों ही राजधानी में एक घटना देखने को मिली थी जहाँ पर सरे-राह एक युवती के साथ छेड़खानी की गयी। विरोध करने पर उसके कपड़े तक फाड़ दिए गए। न्याय की उम्मीद से नजदीकी थाने में पहुँची युवती के साथ ऐसा व्यवहार किया गया जैसे वो शिकायतकर्ता न होकर स्वयं में एक अपराधी हो। इतना ही नहीं ज्यादातर मामलो में तो उच्च अधिकारीयों के निर्देश के बाद भी पुलिस कार्यवाही करने से कतराती है। यहाँ पर यह बात गौर करने योग्य है कि इस तरह के ज्यादातर मामलों में पुलिस कार्यवाही करना चाहती है पर आरोपी की पहुँच के आगे वो कमजोर पड़ती है और उसे हारना पड़ता है। इसी के चलते इस तरह मामलो में पुलिस कार्यवाही के बजाय मामले को नजर अंदाज करना ज्यादा बेहतर समझती है। ऐसे में महिला हेल्पलाइन योजना की कितनी सफल होगी यह बात इस योजना को चलने वालो पर निर्भर करेगी क्योंकि हेल्पलाइन भी वही से संचालित होगी जहाँ से पूरे राज्य की कानून व्यवस्था संचालित होती हैं।
इस योजना के शुभारम्म के अवसर पर अपने संबोधन में मुख्यमंत्री ने माना कि पुलिस में कुछ गड़बड़ है पर उन्होंने यह सोचने या जानने का प्रयास नहीं किया कि आखिर इस समस्या की मूल जड़ क्या है ? इस समस्या की मूल जड़ है सत्ता में बैठे वो लोग जो सत्ता में आने के बाद खुद को कानून से ऊपर समझते हैं। जब भी पुलिस ईमानदारी से इस तरह की घटनाओं को रोकने और कानून व्यवस्था को मजबूत करने का प्रयास करती है तो मात्र सामंती ठसक को बनाये रखने के लिए ये लोग कानून व्यवस्था को मजबूत करने वाले ईमानदार अधिकारियों का सत्ता में पहुँच के चलते स्थानांतरण करा देते हैं जिसके चलते इन रसूखदार घर के चिरागों की तो बात छोड़िये इन चिरागों के साथ रहने वाले चमचे भी खुद को कानून व्यवस्था से ऊपर मान बैठते हैं। ऐसे लोग न सिर्फ कानून व्यवस्था के लिए गहरा संकट खड़ा करते है, बल्कि सत्ता के सुचारू संचालन में बाधा उत्पन्न करते हैं। इनके अनैतिक कृत्य के चलते ही सरकार की छवि धूमिल होती है। इसलिए यह आवश्यक है कि युवा मुख्यमंत्री राज्य की कानून व्यवस्था को मजबूत करने के लिए पहले इन रसूखदारों को चिन्हित करें और इनके विरुद्ध कठोर वैधानिक कार्यवाही का निर्देश पुलिस को दें। जब इन रसूखदारों के विरुद्ध कार्यवाही होगी तो पुलिस का भी मनोबल उठेगा।
हालाँकि यह सही है कि कुछ अधिकारीयों में गड़बड़ी है पर ये गड़बड़ी इतनी नहीं है कि जिसे सुधार न जा सके पर इनको सुधरने से पहले मुख्यमन्त्री को उनको सुधारना होगा जो इन अधिकारियों की गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार हैं अर्थात वे लोग जो खुद को सत्ता का केंद्र बिंदु मान बैठते हैं। जब तक ऐसे लोगों के विरुद्ध कार्यवाही नहीं होगी तब तक महिला हेल्पलाइन योजना की पूर्णकालिक सफलता मात्र एक कोरा आश्वासन ही साबित होगी। इतना ही नहीं इसके परिणाम भी उन्हीं योजनाओं जैसे हो जायेंगे जिनकी शुरआत तो जनहित के लिए की गयी थी पर उनके परिणाम दोषपूर्ण रहे।
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