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सपा सरकार में बहन जी का जलवा

anurag
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shapath-270x300हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री अखिलेश यादव ने घोषणा की है कि किसानो को भूमि अधिग्रहण मूल्य सर्किल रेट से छह गुना अधिक दिया जायेगा। पर यहाँ जो अहम् सवाल खड़ा है वो ये कि कैसे दिया जायेगा ? जबकि अभी तक सपा सरकार ने नयी भूमि अधिग्रहण नीति घोषित ही नहीं की है। घोषित होना तो दूर इस नीति के लिए गठित समिति ने अभी तक इसका ड्राफ्ट भी नहीं तैयार किया है। फिर भी मुख्यमन्त्री अखिलेश शान से ये घोषणा कर रहे हैं कि वो किसानों को उनकी भूमि का मूल्य सर्किल रेट से छह गुना ज्यादा देंगे।

वास्तव में इस तरह की घोषणा ये साबित करती है कि सरकार और प्रशासन में आपसी समन्वय की कमी है क्योंकि यदि सरकार और प्रशासन में समन्वय ठीक होता तो सरकार के मुखिया हमारे युवा मुख्यमन्त्री अखिलेश यादव को ये पता होता कि बिना नयी नीति बने किसानों को उनकी जमीन की कीमत सर्किल रेट से छह गुना जयादा नहीं दी जा सकती है। हाँ ये हो सकता है कि जो भूमि अधिग्रहण नीति मायावती शासन में दो मई 2011 को लागू हुयी थी और उसी के अनुरूप जो सर्किल रेट निर्धारित है सपा सरकार उसका छद गुना ज्यादा मूल्य किसानों को दे दे।

सनद रहे कि दो मई 2011 को तत्कालीन मुख्यमन्त्री मायावती के नेतृत्व में प्रदेश में नयी भूमि अधिग्रहण नीति लागू हुयी थी। इस भूमि अधिग्रहण नीति को तीन हिस्सों में बाँटा गया था। पहला निजी क्षेत्र के लिए दूसरा बुनियादी जरूरतों के लिये और तीसरा विकास प्राधिकरणों और औद्योगिक विकास प्राधिकरणों के लिए अधिग्रहण। इस भूमि अधिग्रहण नीति के अनुसार निजी कम्पनियों को किसानों से सीधे जमीन खरीदनी थी, वह भी आपसी सहमति के आधार पर। किसानों से विकासकर्ता को ही जमीन की रजिस्ट्री करना था। इसमें सरकार की सिर्फ मध्यस्थ की भूमिका थी। सरकार को सिर्फ भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना जारी करनी थी। इसके साथ ही इस भूमि अधिग्रहण नीति में इस बात का प्रावधान किया था कि निजी कम्पनियां किसानों की जमीन का अधिग्रहण तब तक नहीं कर सकतीं, जब तक उस क्षेत्र के 70 फीसदी किसान इसके लिए राजी न हों। यदि 70 प्रतिशत किसान सहमत नहीं होते हैं तो परियोजना पर पुनर्विचार किया जायेगा। मायावती सरकार की इस नीति में जमीनों की कीमत पर किसानों को आपत्ति थी। किसानों ने ज़बर्दस्त विरोध प्रदर्शन किया जिसका फ़ायदा उठाते हुये प्रदेश की समस्त विपक्षी पार्टियों ने इस नयी भूमि अधिग्रहण नीति की आलोचना की थी। उस समय विपक्ष में बैठी समाजवादी पार्टी ने तो बाकायदा इसे अपना चुनावी मुद्दा बनाया था और घोषणा की थी कि यदि 2012 के विधानसभा चुनाव के बाद वो प्रदेश की सत्ता में आयी तो इस नीति की जगह पर नयी नीति बनायेगी और उस नयीनीति के आधार पर किसानों को उनकी ज़मीन का मूल्य देगी।

अपने वायदे के अनुसार समाजवादी पार्टी ने किसानों को उनकी ज़मीन का मूल्य सर्किल रेट से छह गुना ज्यादा देने की घोषणा भी कर दी। पर इस घोषणा को अमलीजामा पहनाने के लिये जिम्मेदार राजस्व विभाग के पास अभी तक इस सन्दर्भ में नयी नीति नहीं है। राजस्व विभाग की लापरवाहियों और नयी नीति बनाने के गठित समिति के गैर जिम्मेदार रवैये के चलते मुख्यमन्त्री की इस घोषणा का किसानों को हाल-फिलहाल कोई लाभ मिलता नहीं दिख रहा है। हालाँकि यह पहली बार नहीं हो रहा जब मुख्यमन्त्री ने कोई घोषणा की हो और उसको अमलीजामा पहनाने वाले विभाग ने लापरवाही न की हो। सवाल ये है कि आखिर वो कौन से कारण हैं जिनके चलते मुख्यमन्त्री की ही घोषणाओं को नौकरशाह नज़रअंदाज़ कर रहे हैं ? जवाब साफ़ है कि सत्ता में आने के लगभग 11 महीने बाद भी युवा मुख्यमन्त्री नौकरशाही पर अपनी पकड़ नहीं बना पाये जिसके चलते बे-लगाम नौकरशाही अपनी मनमर्जी से काम कर रही है।

अगले महीने मार्च में ये सरकार अपना एक साल पूरे कर लेगी। एक साल पूरे होने पर सरकार की तरफ से बड़े ही जोश के साथ एक साल की उपलब्धियाँ रखी जायेंगी। सुशासन और विकास के बड़े-बड़े दावे किये जायेंगे जिनमें आधे से ज्यादा दावे सिर्फ कागजी होंगे जिनका जमीनी रूप में कोई आकार नहीं होगा। पर मुख्यमन्त्री को इससे क्या मतलब कि कितने दावे सही हैं और कितने गलत ? उन्हें तो वही दीखता है जो नौकरशाह दिखाते हैं।

कुछ यही हाल सपा की नयी भूमि अधिग्रहण नीति का है जो पिछले 11 महीने से कछुए की चाल चल रही है। ये नीति कब बनेगी,  कब लागू होगी इस सन्दर्भ में कोई भी अधिकारी बोलने को तैयार नहीं है। हाँ ये पूछने पर कि मुख्यमन्त्री की घोषणा का क्या होगा कुछ अधिकारी दबी जुबान कहते हैं कि कुछ नहीं होगा तो जो नीति बनी है यानि (मायावती शासन) की नीति उसी के अनुरूप मुख्यमन्त्री की घोषणाओं को अमल में लाया जायेगा। ऐसा नहीं हैं कि बसपा शासन की केवल यही एक नीति है जो इस सरकार में भी चल रही है अपितु ऐसी कई ऐसी नीतियाँ हैं जो बनी तो बसपा शासन में थीं पर क्रियान्वित वो सपा शासन में भी हो रही हैं। ऐसे में युवा मुख्यमन्त्री का ये कहना कि मायवती शासन की नीतियाँ जनविरोधी थीं, समझ से परे है। क्योंकि अगर ये नीतियाँ जनविरोधी थी तो फिर सपा शासन के इन 11 महीनों मुख्यमन्त्री अखिलेश ने इनको बदलवाने पर क्यों नहीं जोर दिया ? और यदि जोर दिया है तो ये नीतियाँ क्यों नहीं बदली ?  क्यों नहीं अब तक नयी भूमि अधिग्रहण नीति बन सकी ? जब तक इन सवालों का जवाब न मिल जाये मुख्यमन्त्री अखिलेश को मायावती शासन की नीतियों की आलोचना करने का नैतिक हक नहीं है।

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