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मोदी नाम से डरती है भाजपा

anurag
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अपने एक बयान में भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के संदर्भ में पार्टी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण अडवाणी के बयान को मीडिया ने तोड़ मारुड के पेश किया है। राजनाथ में कहा कि अडवाणी का बयान उस संदर्भ में नहीं था जिस रूप में मीडिया ने पेश किया। स्वयं शिवराज ने सफाई देते हुए कहा कि नरेन्द्र मोदी नंबर वन मुख्यमंत्री हैं और मैं नंबर तीन की पोजीशन का मुख्यमंत्री हूं। सवाल ये उठता है कि अगर आडवाणी का बयान शिवराज के प्रधानमंत्री पद के योग्य होने के संदर्भ में नहीं था तो आडवाणी के बयान पर इतना बवाल क्यों हो रहा है ? क्यो नही आडवाणी के बयान को एक शीर्ष नेता के समान्य बयान से जोड़ के देखा जां रहा है ? क्यों राजनाथ से लेकर शिवराज तक को इस मसले पे सफाई देनी पड़ रही है ? जाहिर सी बात है मोदी लाबी के दबाव में इस बयान का हर तरीके से खंडन किया जा रहा है। और ये बताया जा रहा है कि पूरी भाजपा मोदी के साथ खड़ी है। पर क्या वास्तव में भाजपा का शीर्ष नेत्रत्व नरेन्द्र मोदी के साथ है ?

वास्तव में भाजपा अपने ही बिछाये सियासी जाल में फंस गयी है। पार्टी के कुछ नेताओं का कहना है कि लोकसभा चुनाव की आहट के साथ ही जिस तरह मोदी नाम ने अलग थलग पड़ी भाजपा को मुख्यधारा में जोड़ा उसने पार्टी नेत्र्तव को ये आभास दिलाया कि यदि इस नाम को भुनाया जाये तो चुनावो में भाजपा की तस्वीर को बदला जा सकता है। पर किसी को भी ये यकीन नहीं था कि जैसे जैसे चुनाव का समय नजदीक आएगा मोदी शीर्ष नेतृत्व के लिए गले की हड्डी बन जायेंगे। सभी का मानना था कि समय के साथ भाजपा के अन्य नेताओं की तरह मोदी मीटर को भी डाउन कर दिया जायेगा। यही कारण था कि हर बार संसदीय कमेटी की मीटिंग में पार्टी कार्यकर्ताओं की इस मांग के बाद भी कि मोदी को पीएम पद का अधिकृत उम्मीदवार घोषित किया जाये शीर्ष नेत्रत्व ने मोदी को प्रधानमंत्री पद का अधिकृत उमीदवार घोषित नहीं किया। सभी इस विचार में थे कि जैसे जैसे चुनाव नजदीक आएगा मोदी नाम के चलते भाजपा भी मेन स्ट्रीम में आ जायेगी और फिर समय के साथ ये निर्णय लिया जायेगा कि किसे प्रधानमंत्री पद का अधिकृत उम्मीदवार घोषित किया जाये।
शीर्ष नेतृत्व शुरवात से ही मोदी को पीएम पद का अधिकृत उम्मीदवार घोषित करने के मूड में नहीं था। नेतृत्व की इस भावना को मोदी ने बहुत पहले समझ लिया था इसलिए उन्होंने पार्टी से ज्यादा खुद के ब्रांड को मजबूत किया और एक ऐसा सन्देश जनता के बीच में दिया कि मोदी बिना भाजपा सून है। आज जब भाजपा नेतृत्व मोदी मीटर डाउन करना चाह रहा है तो परिस्थति इसके अनुकूल नहीं है। हर जगह मोदी नाम छाया हुआ ऐसे में पार्टी की मज़बूरी है कि वो मोदी की हर बात को माने। हलाकि इन नेताओं का कहना है कि पार्टी के अंदर मोदी का दबदबा कम करने के लिए शीर्ष नेतृत्व ने काम करना शुरू कर दिया है। पार्टी के पूर्व वरिष्ठ नेता राम जेट मनाली का निष्कासन इसी कड़ी का एक हिस्सा है। आने वाले समय में मोदी समर्थक कई नेता पार्टी के निशाने पे आ सकते है। पर इस कार्यवाही से पहले भाजपा हर हाल में लोकसभा चुनाव निकाल लेना चाहती है। यही कारण है कि मोदी की हर जायज नाजायज बातों को पार्टी मान रही है। समय के साथ हो सकता है कि दबाव में ही सही पार्टी नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का अधिकृत उमीदवार घोषित कर दे। लेकिन चुनाव बाद जीत की स्थिति में पार्टी नरेन्द्र मोदी को ही प्रधानमंत्री बनायेगी यह बात पूरे विश्वाश के साथ कह पाना मुश्किल है।
बहराल चुनाव बाद तस्वीर कुछ भी हो पर मौजूदा दौर में ये बात साफ़ है कि पार्टी नरेन्द्र मोदी के दबाव में है। सधे हुए शब्दों में कहा जाये पार्टी मोदी नाम से डरती है। यही कारण है कि जब भी कोई नेता नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध बयान देता है तो नेतृत्व तुरंत उसके खंडन के लिए आगे आ जाता है। जिसका ताजा उदाहरण आडवाणी बयान है जिसका हर स्तर पर पार्टी खंडन कर रही है बिना ये सोचे कि लाल कृष्ण आडवाणी पार्टी के सबसे शीर्ष नेता है।

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