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गाँधी को याद न करो गांधी को आत्मसात करो

anurag
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2 अक्टूबर को  गाँधी जयंती थी। पूरे देश ने हर्ष और उल्लास के साथ महात्मा गाँधी को याद किया। मनमोहन सिंह से लाकर सोनिया गाँधी तक ने सुबह ही राजघाट पर जाकर गाँधी जी की समाधी पर पुष्पांजलि अर्पित की और उन्हें याद किया।

लेकिन यहाँ जो बेहद अहम् सवाल है वो ये कि क्या सच में आज हम सब गाँधी जयंती मनाने के लायक है जबकि आये दिन हम सब गाँधी के विचारों और सिद्धांतो की सरे राह हत्या करते है। गाँधी ने सत्य, अहिंसा और मानव प्रेम के रास्ते पर चलने की बात कही थी और हम हिंसा, भ्रष्टाचार, झूठ, स्वार्थ, के रास्ते पर लगातार आगे बढ़ते जा रहे है। ऐसी स्थिति में हम किस मुंह से गांधी जयंती मानते आ रहे है। जबकि गाँधी को तो उनकी शहादत के बाद से ही हम भूल गए विशेषकर हमारा युवा वर्ग जिसके कंधें पर कल के भारत का भविष्य है।

अज्ञानता और उन्माद की लपेट में फंसा आज का आधे से ज्यादा युवा खुद को चंद्रशेखर आजाद या भगत सिंह का अनुयायी बताने में ज्यादा गर्व महसूस। उससे गाँधी के विषय में पूछो तो सदैव अप्रत्याशित जवाब ही मिलता है। यहाँ मै स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मेरा इरादा किसी की भी तुलना करना नही है अपितु उन विषयों को उठाना है जो समय साथ ही सही किन्तु इस देश के लिए नासूर बनते जा रहे है।

देश को आजादी किसी एक दम पर नहीं अपितु सामूहिक प्रयास से मिली थी। एक तरफ जहाँ महात्मा गाँधी के नेत्रत्व में नरमपंथी दल आजादी पाने के लिए प्रयासरत था तो वही चन्द्र शेखर आजाद और भगत सिंह के नेतृत्व में गरम पंथी दल भी आजादी के लिए कुछ भी कर डालने तैयार था। इन सभी महान आत्मओ का ही संयुक्त प्रयास था कि 15 अगस्त 1947 को इस देश को आजादी मिल गयी।

पर आजादी बाद से ही देश में विघटनकारी शतियों द्वारा जिस तरह गाँधी को नीचा दिखाने का प्रयास लगातार किया जा रहा है वह यह बताने के लिए कफी है कि आज के दौर में विघटनकारी शक्तियां कितना विकराल रूप इस देश में ले चुकी है।

यहाँ चिंता का जो मुख्य कारण है वो ये इन विघटनकारी शक्तियों का प्रभाव सीधा सीधा इस देश युवा वर्ग पर पड़ है जो अज्ञानता में सही लेकिन उनके विचारों को खुद लागू कर रहा है जो कीसी भी रूप में इस देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए ठीक नहीं है। लिहाजा अब ये समय की मांग है कि झूठ और फरेब का जो मायाजाल इन विघटनकारी शक्तियों ने युवा वर्ग के सामने बुन रखा है उसे तोड़ा जाये। और ये तभी हो पायेगा जब हम गाँधी को याद करने की जगह पर गांधी को आत्मसात करेंगे उनके मूल्यों को अपने जीवन में अपनाएंगे।

किन्तु यक्ष प्रश्न तो यही है कि क्या हम गांधी को आत्मसात कर पायेंगे?

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